कुटुंब प्रबोधन : एक नैसर्गिक संकल्पना

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Feb 12, 2023
घर-संसार

वर्तमान विपर्यास- -

आप किसी व्यवसायिक प्रतिष्ठान में जाते हैं तो सामग्री, उसकी कीमत, उपयोगिता, टिकने की अवधि, गारंटी-वारंटी की बात करते हैं। जब शिक्षण-संस्थान में जाते हैं तो शैक्षिक बात करते हैं;होटल में खाने-पीने एवं आवास की चिंता करते हैं;यात्रा में जाते हैं तो टिकट,लगने वाला समय,सुरक्षा की जानकारी लेते हैं;वस्त्र हेतु कपड़ा दुकान पर जाते हैं। उपरोक्त सब आवश्यकता जब एक ही छत के नीचे या एक ही परिसर में उपलब्ध हो जाये,उसे आधुनिक भाषा में "माल" कहा जाता है।
क्या वर्तमान भारतीय परिवार धीरे-धीरे "माल" बनता जा रहा है,जहां सिर्फ अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्त्ति और कठिनाईयों से छुटकारा पाने मात्र के लिए परस्पर बातें होती हैं।पश्चिम में एक संकल्पना चलती है "सोसल कांटेक्त थ्योरी" यानी समाज एक करार है,समझौता है,एक-दूसरे के हित को बाधित न करने का।आज भारतीय परिवार में समाज-धर्म-संस्कृति-राष्ट्र के संबंध में परस्पर संवाद का सर्वथा अभाव परिलक्षित हो रहा है। समग्र विश्व-ब्रह्मांड एक ही चेतना से परिव्याप्त है।उसमें जब तक संतुलन है,तब तक जगत का अभाव बना रहता है,असंतुलन से जगत का पुन: प्रकटीकरण प्रारंभ होता है।संपूर्ण चेतना एक ही है,हम सब एक हैं,इसकी अनुभूति कराने का सफल न्यूनतम सामुदायिक ईकाई है भारतीय परिवार,इसलिए भारतवर्ष में परिवार को प्रथम पाठशाला एवं मां को प्रथम शिक्षक माना जाता है।

भारतीय जीवन मूल्य- -

भारतीय जीवन मूल्य का सर्जन एवं उसका सफल संधारण,संरक्षण एवं संवर्धन का श्रेय,भारत की परिवार-संकल्पना को है। भारतीय समाज जीवन का स्वावलंबी,सशक्त, रक्त-संबंध से युक्त और आध्यात्मिकता आधारित सबसे लधु सामूहिक जैविक ईकाई परिवार है। अंग्रेजों के कूटनीतिक षडयंत्र के कारण भारत में उत्पन्न विचार-व्यवहार के प्रति वितृष्णा और विदेशियों के भौतिकवादी विचार-व्यवहार के प्रति अनुराग से उत्पन्न विकृतियों से भारतीय परिवार कुप्रभावित हो रहा है। भारतीय सामाजिक ताना-बाना का मूलभूत ईकाई परिवार है,इसलिए इसका संरक्षण,संपोषण,संवर्धन की आवश्यकता को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाय,यह समय की मांग है।

🙏 कुटुंब-प्रबोधन- -

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने प्रारंभकाल से ही भारत के राष्ट्रीय समाज के अंदर भारतीय जीवन मूल्य की पुनर्स्थापना में प्रयास रत है। वर्तमान समय में पश्चिमात्य आधिपत्य से युक्त तकनीकी विकास के कारण,आधुनिकता के नाम पर तकनीक की सदुपयोगिता के बदले पश्चिमी बाजारवादी संस्कृति के भौंडी नकल के कारण भारतीय जीवन मूल्य का क्षरण हो रहा है।  मात्र प्रतिक्रिया(समीक्षा,आलोचना एवं विरोध)समाधान नहीं है।हमारी क्रिया क्या होनी चाहिए,हमको करना क्या है,इससे ही समाधान प्राप्ति की आशा की जा सकती है। समाज जीवन में,राष्ट्र जीवन में आज क्या-क्या होनी चाहिए,इसका सतत चिंतन संघ में चलता रहता है,आवश्यकतानुसार विमर्शपूर्वक कार्य प्रारंभ किये जाने की संघ की सर्वविदित परंपरा है। उसी परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रुप में "कुटुंब-प्रबोधन" के नाम से एक कार्य प्रारंभ किया गया है,जिसे संघ की भाषा में "कुटुंब-प्रबोधन गतिविधि" के नाम से संबोधित किया जाता है। हम सबको अपने-अपने परिवारों में सुसंवादपूर्वक अपने धर्म-संस्कृति-परंपरा-इतिहास-भूगोल के बारे में चर्चा कर अपने परिवार के द्वारा समाज-राष्ट्र-मानव के प्रति क्या करणीय कर्त्तव्य है,इसका निर्धारण और क्रियान्वयन से ही भारतीय जीवन मूल्य का क्षरण रोक पायेंगे।
परिवार में करणीय कार्य, जिसे आप अपने परिवार में कर सकते हैं - -
  • महीने में 2-3 बार परिवार जनों के साथ बैठकर;क्या अच्छा देखा,सुना,पढ़ा,सीखा?इन विषयों पर चर्चा।
  • महीने में 1 दिन;दो-चार मित्र परिवारों को अपने घर पर भोजन/जलपान/चायपान के लिए बुलाना।
  • मोबाइल,टी वी आदि का विवेकपूर्ण उपयोग करना।
  • आप जितने बजे जगते हैं;उससे 30 मिनट पहले जगना,धीरे-धीरे प्रात: 4 बजे पर जगना।
  • परिवार में प्रतिदिन सत् साहित्य का;वाचन-मनन करना(धार्मिक ग्रंथ,तेरे,श्लोक,स्तोत्र,प्रेरक कथायें तथा जीवनियां)।
  • अपनी इच्छा-आकांक्षाओं की पूर्त्ति करते समय;अधिकाधिक स्थानीय उत्पादों की खरीदी करना,स्वदेशी का उपयोग।
  • अपने घर-परिवार से;आलस्य,गलत सामाजिक मान्यताओं,भय,स्वार्थ,अहंकार को दूर करना।
  • जन्मदिन मनाते समय;अपने शरीर,मन,बुद्धि के विकास के बारे में आत्मनिरीक्षण करना।समाज हित के लिये देने का उपक्रम करना।
  • उदार मन से सामाजिक संस्थानों को;तन-मन-धनपूर्वक सहयोग करना।
  • हमें अपने-अपने घर को भक्तिमय,शक्तिमय,आनंदमय बनाना है।

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