सच्चा धर्म

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Mar 28, 2023
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भारत भूमि की उदार और सहिष्णु छवि को अपनी पंक्तियों में उतारते हए कहा है - भारत माता का मन्दिर यह, समता का सम्वाद यहाँ। सबका शिव कल्याण यहाँ, हैं पावें सभी प्रसाद यहाँ।।
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    भारत–भूमि की महानता उसकी विशाल जनसंख्या अथवा भू–क्षेत्र के कारण नहीं, अपितु उसकी भव्य और अनुकरणीय उदार परम्पराओं के कारण रही है। आचार, विचार, चिन्तन, भाषा और वेशभूषा की विविधताओं को राष्ट्रीयता के सूत्र में पिरोकर भारत ने मानवीय एकता का आदर्श उपस्थित किया है।
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    धर्म के तत्व–

    भारतीय मान्यता के अनुसार धैर्य, क्षमा, आत्मसंयम, चोरी न करना, पवित्र भावना, इन्द्रियों पर नियन्त्रण बुद्धिमत्ता, विद्या, सत्य और क्रोध न करना ये धर्म के दस लक्षण हैं।
    सभी धर्म इनको अपना आदर्श और अपना अंग मानते हैं। महाभारत में कहा गया है कि जो सब धर्मों को सम्मान नहीं देता, वह धर्म नहीं अधर्म है। मनुष्य को मनुष्य का गला काटने की दुष्प्रेरणा, दूसरों का घर जलाने की और नारियों के अपमान की कु–शिक्षा अधर्म है और ईश्वर का घोर अपमान है।

    धर्म और सम्प्रदाय–

    धर्म अत्यन्त व्यापक विचार है। इसमें मानवता के श्रेष्ठ विचार और भाव निहित हैं। धर्म किसी एक व्यक्ति के उपदेश या शिक्षाओं को नहीं कहते। किसी एक ही महापुरुष, पैगम्बर या अवतार के उपदेशों से सम्प्रदाय बनते हैं, धर्म नहीं।
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    भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या–

    वैदिक धर्म या सनातन धर्म संसार का आदि धर्म है। यह किसी पुरुष विशेष के उपदेशों, शिक्षाओं या संदेशों पर आधारित नहीं है। इसकी अनेक शाखाएँ तथा उपशाखाएँ हैं। बौद्ध, जैन, सिख आदि सम्प्रदाय इसी से विकसित हुए हैं। विदेशी आक्रमणकारियों के साथ भारत में इस्लाम तथा ईसाई धर्मों (सम्प्रदायों) का आगमन हुआ है।
    भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या भारत के मूल सनातन धर्म तथा अन्य सम्प्रदायों के वैचारिक अन्तर से सम्बन्धित है। साम्प्रदायिक कटुता के कारण अपने ही सम्प्रदाय को अच्छा मानना, दूसरों को बलपूर्वक अपना धर्म अपनाने को बाध्य करना आदि साम्प्रदायिकता के मूल कारण हैं। भारत में यह समस्या मूलतः हिन्दू और इस्लाम धर्म के बीच है।
    साम्प्रदायिक द्वेष के जहर को इस देश ने शताब्दियों से झेला है। 1947 में देश के विभाजन के समय खून की जो होली खेली गई थी वह आज भी कोढ़ के रूप में चाहे जब फूट निकलती है। इसका परिणाम होता है–हत्या, आगजनी, लूट, बलात्कार और अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में देश की बदनामी।
    करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति का विनाश होता है, द्वेष की खाइयाँ और गहरी हो जाती हैं। इस साम्प्रदायिक दुराग्रह ने ही तो सुकरात को जहर परोसा, ईसा को सूली पर चढ़ाया और गांधी के जिगर में गोली उतारी है।

    सन्तों, फकीरों और साहित्यकारों के उपदेश–

    भारत के सन्तों, फकीरों तथा साहित्यकारों ने सदा साम्प्रदायिक एकता का संदेश तथा उपदेश दिया है। सबसे पहले सन्त कबीर हैं जिन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों को धर्म का मर्म न समझने के लिए फटकारा है–
    हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुरक कहै रहिमाना। आपस में दोऊ लरि–लरि मुए, मरम न काहू जाना।
    इसी प्रकार साम्प्रदायिक एकता का उपदेश देने वाले सन्तों की एक लम्बी श्रृंखला है। इस एकता के सर्वश्रेष्ठ पक्षधर महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता ? इकबाल ने कहा है कि मजहब कभी आपस में बैर करना नहीं सिखाता-
    मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा।
    अकबर इलाहाबादी तो दशहरा और मुहर्रम साथ–साथ मनाने की कामना करते हैं-
    मुहर्रम और दशहरा साथ होगा निबह उसका हमारे हाथ होगा। खुदा की ही तरफ से है यह संजोग……इत्यादि।

    सच्चा धर्म और उसकी शिक्षा–

    सच्चा धर्म मानवता है। धर्म बैर नहीं सिखाता। वह तो एकता की शिक्षा देता है क्योंकि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की सन्तान हैं। धर्म मित्रता की शिक्षा देता है, शत्रुता की नहीं।

    उपसंहार–

    आज देश को साम्प्रदायिक सद्भाव की अत्यन्त आवश्यकता है। अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियाँ और द्वेषी पड़ोसी हमें कमजोर बनाने और विखण्डित करने पर तुले हुए हैं। ऐसे समय में देशवासियों को परस्पर मिल–जुलकर रहने की परम आवश्यकता है।
    मन्दिर–मस्जिद के नाम पर लड़ते रहने का परिणाम देश के लिए बड़ा घातक हो सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बदनामी होती है। अर्थतन्त्र पर भारी बोझ पड़ता है। अतः हम प्रेम और सद्भाव से रहें तो कितना अच्छा है।

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