कुटुम्ब वत्सल से विश्व कुटुम्ब वत्सल

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Mar 10, 2023
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परिवार एक विस्तृत अवधारणा है। अपने शास्त्रों ने तो 'वसुधैव कुटुंबकम्' अर्थात् पूरी दुनिया ही अपना परिवार है, ऐसा कहा है। और इसीलिए सनातन हिन्दू विचार 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' का ही रहा है। हम सबके सुखी- नीरोगी होने की कामना करते हैं। पर केवल कामना करने से ही सबकुछ अच्छा होने वाला नहीं है। इसलिए आज कुछ ठोस काम करने की आवश्यकता है। चूँकि परिवार (कुटुम्ब व्यवस्था) समाज, राष्ट्र और विश्व-व्यवस्था - सबकी रीढ़ है, इसलिए इसे सुसंस्कृत करना तथा भारतीय सनातन व्यवस्था के अनुरूप ढालना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि का उद्देश्य भी यही है। यानी हमें कुटुम्ब वत्सल बनना है और फिर पूरी दुनिया को ऐसा ही बनाना है। अंतिम लक्ष्य तो यही है - कुटुम्ब वत्सल से विश्व कटुम्ब वत्सल की ओर बढ़ना। अब ऐसा होगा कैसे? तो इसके लिए कुछ सहज-सरल व्यावहारिक सूत्रों को अपने परिवार में व्यवहार में लाना होगा। तो पहला प्रश्न - अपना घर कैसा हो? उत्तर है, अपना घर यानी शांति, सहयोग, उत्साह व आकर्षण का केन्द्र। अपना घर यानी संयम, स्नेह व सम्मान का संतुलन-केन्द्र। अपना घर यानी भक्तिमय, शक्तिमय तथा आनंदमय स्थल। अपना घर यानी देवालय, विद्यालय, सेवालय तथा आदरालय। अपना घर यानी भक्तिधाम, शक्तिधाम तथा युक्तिधाम। अब यह होगा कैसे? तो इसके दो पक्ष हैं। एक भौतिक पक्ष और दूसरा मानवीय पक्ष। भौतिक पक्ष के संस्कार के लिए घर के द्वार/ उचित स्थान पर ऊँ, स्वास्तिक, भगवा ध्वज, जय श्री राम, राधे- राधे आदि का स्टीकर या ध्वज रहे। प्रवेश द्वार पर रंगोली हो, वंदनवार हो। घर में पूजा- स्थान, तुलसी- चौरा, महापुरुषों, पूर्वजों व देवी-देवताओं के चित्र लगा हो। घर में हर सामान व्यवस्थित व सुसज्जित हो। बिजली, पानी, गैस आदि का आवश्यकतानुसार ही उपयोग हो। अधिकाधिक रूप में स्थानीय, स्वदेशी उत्पादों का उपयोग हो। स्वच्छता व्यवहार में रहे। पड़ोसियों तथा घर में सेवा देने वालों के साथ मधुर संबंध हो। विभिन्न उत्सवों में भारतीयता तथा हिन्दू संस्कार -परंपराओं की झलक दिखाई दे। अपसंस्कृति तथा पाश्चात्य अंधानुकरण पर रोक लगे। पर सबसे महत्वपूर्ण मानवीय पक्ष है। परिवार के सभी सदस्यों में आत्मीयता, स्नेह, संयम, सम्मान, सहयोग, शांति, उत्साह, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी आदि गुणों का स्वाभाविक विकास हो। परिवार में वरिष्ठजनों का सम्मान व आदर हो। सबके बीच संवाद बना रहे। नियमित सामूहिक भजन हो। शास्त्रों का अध्ययन हो। साप्ताहिक मंगल संवाद हो। कुटुम्ब प्रबोधन के छह बिंदुओं यानी भजन, भोजन, भवन, भ्रमण, भाषा, भूषा पर चर्चा व तदनुरूप व्यवहार हो। कार्यों का व्यावहारिक विभाजन हो। सभी अपने काम ससमय तथा पूरी दक्षता के साथ करें। परिवारजनों में नैतिक मूल्यों का विकास हो। पूरा परिवार रात्रि में एक साथ भजन- भोजन करे। मोबाइल व टीवी का सम्यक् उपयोग हो। हाथ से काम की आदत बने। बच्चों को शारीरिक खेलकूद, व्यायाम-योग के लिए प्रोत्साहित किया जाय। दान-पुण्य तथा त्याग की भावना विकसित हो, इसके लिए जन्मदिन, वैवाहिक वर्षगांठ आदि के अवसरों पर बच्चों से अनाथ, वृद्ध, भिक्षुक जनों के बीच भोजन, वस्त्र आदि का वितरण कराया जाय। आदि। यदि उपर्युक्त बिषयों को अपने घर-परिवार में व्यावहारिक रूप में लागू कर दिया जाय तो अवश्य ही अपना परिवार कुटुम्ब वत्सल हो जाएगा। फिर यही आदत अपने पड़ोसियों के बीच डालनी है।अगर यह काम सबके घर में शुरू हो गया तो धीरे-धीरे हम कुटुम्ब वत्सल से विश्व कुटुम्ब वत्सल की ओर के लक्ष्य को शीघ्र ही प्राप्त कर लेंगे।

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